Zindagi ke fasane badlte ja rahe h na....
धूप बहुत है मौसम जल थल भेजो ना
बाबा! मेरे नाम का बादल भेजो ना
मौलसिरी की शाखों पर भी दिए जलें
शाखों का केसरिया आँचल भेजो ना
नन्ही-मुन्नी सब चहकारें कहाँ गईं
मोरों के पैरों की पायल भेजो ना
बस्ती-बस्ती दहशत किसने बो दी है
गलियों-बाज़ारों की हलचल भेजो ना
सारे मौसम एक उमस के आदी हैं
छाँव की ख़ुशबू, धूप का सन्दल भेजो ना
मैं बस्ती में आख़िर किस से बात करूँ
मेरे जैसा कोई पागल भेजो ना
♦ ♦
2
सिर्फ़ सच और झूठ की मीज़ान में रक्खे रहे
हम बहादुर थे मगर मैदान में रक्खे रहे
जुगनुओं ने फिर अँधेरों से लड़ाई जीत ली
चाँद-सूरज घर के रौशनदान में रक्खे रहे
धीरे-धीरे सारी किरणें ख़ुदकुशी करने लगीं
हम सहीफ़ा थे मगर जुज़दान में रक्खे रहे
बन्द कमरे खोलकर सच्चाइयाँ रहने लगीं
ख़्वाब कच्ची धूप थे, दालान में रक्खे रहे
सिर्फ़ इतना फ़ासला है ज़िन्दगी से मौत का
शाख़ से तोड़े गए गुलदान में रक्खे रहे
ज़िन्दगी भर अपनी गूंगी धड़कनों के साथ-साथ
हम भी घर के क़ीमती सामान में रक्खे रहे
♦ ♦
3
सर पर सात आकाश, ज़मीं पर सात समुन्दर बिखरे हैं
आँखें छोटी पड़ जाती हैं इतने मंज़र बिखरे हैं
ज़िन्दा रहना खेल नहीं है इस आबाद ख़राबे में
वह भी अक्सर टूट गया है, हम भी अक्सर बिखरे हैं
इस बस्ती के लोगों से जब बातें की तो यह जाना
दुनिया भर को जोड़ने वाले अन्दर-अन्दर बिखरे हैं
इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागीं हैं, ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं
आँगन के मासूम शजर ने एक कहानी लिक्खी है
इतने फल शाख़ों पे नहीं थे जितने पत्थर बिखरे हैं
सारी धरती, सारे मौसम, एक ही जैसे लगते हैं
आँखों-आँखों कैद हुए थे मंज़र-मंज़र बिखरे हैं
♦ ♦
4
हँसते रहते हैं मुसल्सल हम-तुम
हों न जाएं कहीं पागल हम-तुम
जैसे दरिया किसी दरिया से मिले
आओ! हो जाएँ मुकम्मल हम-तुम
उड़ती फिरती है हवाओं में ज़मीं
रेंगते फिरते हैं पैदल हम-तुम
प्यास सदियों की लिए आँखों में
देखते रहते हैं बादल हम-तुम
धूप हमने ही उगाई है यहाँ
हैं इसी राह का पीपल हम-तुम
शहर की हद ही नहीं आती है
काटते रहते हैं जंगल हम-तुम
♦ ♦
5
हौसले ज़िन्दगी के देखते हैं
चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं
नींद पिछली सदी से ज़ख़्मी है
ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं
रोज़ हम इस अँधेरी धुंध के पार
क़ाफ़िले रौशनी के देखते हैं
धूप इतनी कराहती क्यों है
छाँव के ज़ख़्म सी के देखते हैं
टकटकी बाँध ली है आँखों ने
रास्ते वापसी के देखते हैं
बारिशों से तो प्यास बुझती नहीं
आइए ज़हर पी के देखते हैं
♦ ♦
6
हमें दिन-रात मरना चाहिए था
मियाँ कुछ कर गुज़रना चाहिए था
बहुत ही ख़ूबसूरत है यह दुनिया
यहाँ कुछ दिन ठहरना चाहिए था
मुझे तूने किनारे से है जाना
समुन्दर में उतरना चाहिए था
यहाँ सदियों से तारीकी जमी है
मेरी शब को सिहरना चाहिए था
अकेली रात बिस्तर पर पड़ी है
मुझे इस दिन से डरना चाहिए था
डुबोकर मुझ को ख़ुश होता है दरिया
उसे तो डूब मरना चाहिए था
किसी से बेवफ़ाई की है मैंने
मुझे इक़रार करना चाहिए था
यह देखो किरचियाँ हैं आइनों की
सलीक़े से सँवरना चाहिए था
किसी दिन उसकी महफ़िल में पहुँच कर
गुलों में रंग भरना चाहिए था
फ़लक पर तब्सरा करने से पहले
ज़मीं का क़र्ज़ उतरना चाहिए था
♦ ♦
7
दाव पर मैं भी, दाव पर तू भी
बेख़बर मैं भी, बेख़बर तू भी
आसमां! मुझ से दोस्ती कर ले
दरबदर मैं भी दरबदर तू भी
कुछ दिनों शहर की हवा खा ले
सीख जायेगा सब हुनर तू भी
मैं तेरे साथ, तू किसी के साथ
हमसफ़र मैं भी हमसफ़र तू भी
हैं वफ़ाओं के दोनों दावेदार
मैं भी इस पुलसिरात पर, तू भी
ऐ मेरे दोस्त! तेरे बारे में
कुछ अलग राय थी मगर, तू भी
♦ ♦
8
कौन दरियाओं का हिसाब रखे
नेकियाँ, नेकियों में डाल आया
ज़िन्दगी किस तरह गुज़ारते हैं
ज़िन्दगी भर न यह कमाल आया
झूठ बोला है कोई आइना
वरना पत्थर में कैसे बाल आया
वह जो दो गज़ ज़मीं थी मेरे नाम
आसमां की तरफ़ उछाल आया
क्यों ये सैलाब-सा है आँखों में
मुस्कुराए थे हम, ख्याल आया
♦ ♦
9
मेरे मरने की ख़बर है उसको
अपनी रुसवाई का डर है उसको
अब वह पहला-सा नज़र आता नहीं
ऐसा लगता है नज़र है उसको
मैं किसी से भी मिलूँ, कुछ भी करूँ
मेरी नीयत की ख़बर है उसको
भूल जाना उसे आसान नहीं
याद रखना भी हुनर है उसको
रोज़ मरने की दुआ माँगता है
जाने किस बात का डर है उसको
मंज़िलें साथ लिये फिरता है
कितना दुश्वार सफ़र है उसको
♦ ♦
बाबा! मेरे नाम का बादल भेजो ना
मौलसिरी की शाखों पर भी दिए जलें
शाखों का केसरिया आँचल भेजो ना
नन्ही-मुन्नी सब चहकारें कहाँ गईं
मोरों के पैरों की पायल भेजो ना
बस्ती-बस्ती दहशत किसने बो दी है
गलियों-बाज़ारों की हलचल भेजो ना
सारे मौसम एक उमस के आदी हैं
छाँव की ख़ुशबू, धूप का सन्दल भेजो ना
मैं बस्ती में आख़िर किस से बात करूँ
मेरे जैसा कोई पागल भेजो ना
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सिर्फ़ सच और झूठ की मीज़ान में रक्खे रहे
हम बहादुर थे मगर मैदान में रक्खे रहे
जुगनुओं ने फिर अँधेरों से लड़ाई जीत ली
चाँद-सूरज घर के रौशनदान में रक्खे रहे
धीरे-धीरे सारी किरणें ख़ुदकुशी करने लगीं
हम सहीफ़ा थे मगर जुज़दान में रक्खे रहे
बन्द कमरे खोलकर सच्चाइयाँ रहने लगीं
ख़्वाब कच्ची धूप थे, दालान में रक्खे रहे
सिर्फ़ इतना फ़ासला है ज़िन्दगी से मौत का
शाख़ से तोड़े गए गुलदान में रक्खे रहे
ज़िन्दगी भर अपनी गूंगी धड़कनों के साथ-साथ
हम भी घर के क़ीमती सामान में रक्खे रहे
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सर पर सात आकाश, ज़मीं पर सात समुन्दर बिखरे हैं
आँखें छोटी पड़ जाती हैं इतने मंज़र बिखरे हैं
ज़िन्दा रहना खेल नहीं है इस आबाद ख़राबे में
वह भी अक्सर टूट गया है, हम भी अक्सर बिखरे हैं
इस बस्ती के लोगों से जब बातें की तो यह जाना
दुनिया भर को जोड़ने वाले अन्दर-अन्दर बिखरे हैं
इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागीं हैं, ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं
आँगन के मासूम शजर ने एक कहानी लिक्खी है
इतने फल शाख़ों पे नहीं थे जितने पत्थर बिखरे हैं
सारी धरती, सारे मौसम, एक ही जैसे लगते हैं
आँखों-आँखों कैद हुए थे मंज़र-मंज़र बिखरे हैं
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हँसते रहते हैं मुसल्सल हम-तुम
हों न जाएं कहीं पागल हम-तुम
जैसे दरिया किसी दरिया से मिले
आओ! हो जाएँ मुकम्मल हम-तुम
उड़ती फिरती है हवाओं में ज़मीं
रेंगते फिरते हैं पैदल हम-तुम
प्यास सदियों की लिए आँखों में
देखते रहते हैं बादल हम-तुम
धूप हमने ही उगाई है यहाँ
हैं इसी राह का पीपल हम-तुम
शहर की हद ही नहीं आती है
काटते रहते हैं जंगल हम-तुम
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हौसले ज़िन्दगी के देखते हैं
चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं
नींद पिछली सदी से ज़ख़्मी है
ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं
रोज़ हम इस अँधेरी धुंध के पार
क़ाफ़िले रौशनी के देखते हैं
धूप इतनी कराहती क्यों है
छाँव के ज़ख़्म सी के देखते हैं
टकटकी बाँध ली है आँखों ने
रास्ते वापसी के देखते हैं
बारिशों से तो प्यास बुझती नहीं
आइए ज़हर पी के देखते हैं
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हमें दिन-रात मरना चाहिए था
मियाँ कुछ कर गुज़रना चाहिए था
बहुत ही ख़ूबसूरत है यह दुनिया
यहाँ कुछ दिन ठहरना चाहिए था
मुझे तूने किनारे से है जाना
समुन्दर में उतरना चाहिए था
यहाँ सदियों से तारीकी जमी है
मेरी शब को सिहरना चाहिए था
अकेली रात बिस्तर पर पड़ी है
मुझे इस दिन से डरना चाहिए था
डुबोकर मुझ को ख़ुश होता है दरिया
उसे तो डूब मरना चाहिए था
किसी से बेवफ़ाई की है मैंने
मुझे इक़रार करना चाहिए था
यह देखो किरचियाँ हैं आइनों की
सलीक़े से सँवरना चाहिए था
किसी दिन उसकी महफ़िल में पहुँच कर
गुलों में रंग भरना चाहिए था
फ़लक पर तब्सरा करने से पहले
ज़मीं का क़र्ज़ उतरना चाहिए था
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7
दाव पर मैं भी, दाव पर तू भी
बेख़बर मैं भी, बेख़बर तू भी
आसमां! मुझ से दोस्ती कर ले
दरबदर मैं भी दरबदर तू भी
कुछ दिनों शहर की हवा खा ले
सीख जायेगा सब हुनर तू भी
मैं तेरे साथ, तू किसी के साथ
हमसफ़र मैं भी हमसफ़र तू भी
हैं वफ़ाओं के दोनों दावेदार
मैं भी इस पुलसिरात पर, तू भी
ऐ मेरे दोस्त! तेरे बारे में
कुछ अलग राय थी मगर, तू भी
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कौन दरियाओं का हिसाब रखे
नेकियाँ, नेकियों में डाल आया
ज़िन्दगी किस तरह गुज़ारते हैं
ज़िन्दगी भर न यह कमाल आया
झूठ बोला है कोई आइना
वरना पत्थर में कैसे बाल आया
वह जो दो गज़ ज़मीं थी मेरे नाम
आसमां की तरफ़ उछाल आया
क्यों ये सैलाब-सा है आँखों में
मुस्कुराए थे हम, ख्याल आया
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मेरे मरने की ख़बर है उसको
अपनी रुसवाई का डर है उसको
अब वह पहला-सा नज़र आता नहीं
ऐसा लगता है नज़र है उसको
मैं किसी से भी मिलूँ, कुछ भी करूँ
मेरी नीयत की ख़बर है उसको
भूल जाना उसे आसान नहीं
याद रखना भी हुनर है उसको
रोज़ मरने की दुआ माँगता है
जाने किस बात का डर है उसको
मंज़िलें साथ लिये फिरता है
कितना दुश्वार सफ़र है उसको
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